बद्रीनाथ भगवान् के दर्शन करते हुए भक्त लोग |
बोलो श्री बद्रीनारायण भगवान् की जय हो |
हम सभी लोग लगभग जानते है कि
बद्रीनाथ का मन्दिर उत्तराखंड में है | वहां एक अलखनंदा नदी बहती है लेकिन हर इंसान वहां जाने का खर्चा नहीं वहन कर सकता है| लेकिन जो लोग भगवान् श्री बद्रीनाथ के दर्शन करना चाहते हैं उन लोगो को कंही जाने कि जरुरत नहीं है क्योकि श्री भगवान् बद्रीनाथ का बहुत पुराना मन्दिर ब्रिज चौरासी कोस में है |यह मन्दिर राजस्थान के भरतपुर जिले कि डीग तहशील में पड़ता है | यह एक बद्री नाम का गांव है | इस गांव में में श्री
बद्रीनाथ का बहुत पुराना मन्दिर है |
यहाँ आपको श्री बद्रीनारयण के दर्शन हो जायेंगे | यंहा ऐसी मान्यता है कि श्री भगवान् कृष्ण द्वापर युग में यहाँ आये थे और भगवान् बद्रीनाथ के दर्शन किये और अपने लोगो को भी दर्शन कराये थे |यहां एक नदी भी बहती है जिसे अलखनंदा के नाम से जाना जाता है |इस
नदी का जल एकदम साफ़ और शुद्ध है |
सैलानी यहाँ काफी मात्रा में रोज आते हैं और अलखनंदा में स्नान करते हैं तथा श्री
बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं और आनन्द महसूस करते हैं |
सभी तीर्थों को ब्रज में बुलाया
मान्यता है कि जब यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। पर्वत पर नंदी स्वरूप में दिखने वाली विशालकाय शिला के नीचे शिव जी का छोटा सा मंदिर है। इसके अलावा बद्रीनाथ भी 84 कोस में ही विराजमान हैं। जिन्हें बूढ़े बद्री के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही अलकनंदा कुंड भी है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं।
लोक कथा
पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है।
बदरीनाथ नाम की कथा
भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
Where is this temple location plus
ReplyDeleteThis temle located in Rajasthan
ReplyDeleteVillage - Badri
Tehseel - Deeg
Dist- Bharatpur
Rajasthan
321203