Deeg Palace
Deeg पैलेस एक महल है यह एक प्राचीन शहर डीग जो कि भरतपुर जिला, राजस्थान से लगभग 32 किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है। इस शहर का प्राचीन नाम दीर्घापुर था। स्ंकद पुराण में भी ‘दीर्घ’ या ‘दीर्घापुर’ के रूप में उल्लेख किया गया है। यह हर साल तीन दिनों के लिए सितम्बर माह में मेले का आयोजन किया जाता है।
डीग को भरतपुर राज्य की पहली राजधानी राजा ठाकुर बदन सिंह ने बनाया था। कभी भरतपुर के शासकों का ग्रीष्मकालीन आवास रहे, डीग ने क्षेत्र की भरतपुर राज्य की दूसरी राजधानी बनने की भूमिका निभाई है।
डीग महल को जलमहल के नाम भी प्रसिद्ध है। यह महल जाट शासक महाराजा सूरजमल (1756-63 ई.) तथा जवाहर सिंह (1764-68 ई.) द्वारा बनवाये गये थे।
डीग किला और जलमहल महाराजा सूरजमल के महत्वपूर्ण निर्माण हैं। किले का मुख्य आकर्षण है यहां का निगरानी बुर्ज (वॉच टावर), जहां से न केवल पूरे महल को देखा जा सकता है, बल्कि शहर का नजारा भी लिया जा सकता है। आगरा किले से लूट कर यहां लाई गई तोप के अलावा गहरी खाई, ऊंची दीवारों और मजबूत द्वारों के घिरे अब इस किले के अवशेष मात्र ही देखे जा सकते हैं।
डीग के महलों में चतुष्कोण बनाते हुए बीच में एक बगीचा है जोकि चारबाग शैली में बना हुआ। इसमें फव्वारे लगे हुए हैं और यह महल अपने फव्वारे के लिए प्रसिद्ध है जो आज भी वर्ष में दो बार संचालित किये जाते है।
पूर्व व पश्चिम में दो सरोवर है जिनको गोपाल व रूप सागर कहा जाता है। उत्तर की और नन्द भवन है, पश्चिम में मुख्य इमारत गोपाल भवन है, जो सभी महलों में सर्वाधिक विशाल है। यह तीनों और से दुमंजिला है और बीच में विशाल सभा भवन है। गोपाल भवन से थोडी दूर दो छोटी इमारतें हैं जो सावन-भादों भवन के नाम से जानी जाती हैं। चतुष्कोण के दक्षिण की और उत्तर की तरफ मुंह किये दो महल हैंः
(1) पश्चिम में मकराना के संगमरमर से बना सूरज भवन और (2) पूर्व में भूरे बलुआ पत्थर से बना किशन भवन है। इन दोनों महलों के बीच इस मजबूत इमारत की छत पर एक टंकी है जो इन सभी महलों व बगीचों में जल प्रवाह करती है।
डीग जाने के लिए अप्प बस और ट्रैन से दोनों से विजिट कर सकते हैं |
बस से आप यदि दिल्ली से होकर जाना चाहते हो तो दिल्ली से 150 km पड़ेगा |
दिल्ली से सीधा दिल्ली-मथुरा हाईवे से होते हुए कोसीकलां-कामां रूट से होते हुए सीधा डीग |
ट्रैन से आप मथुरा-अलवर ट्रैन से पहुंच सकते हो |
डीग से मात्र 10 km की दूरी पर हैं श्रीबद्रीनारायण भगवान् का अद्भुत प्राचीन मंदिर श्री बद्रीधाम में |
हम सभी लोग लगभग जानते है कि बद्रीनाथ का मन्दिर उत्तराखंड में है | वहां एक अलखनंदा नदी बहती है लेकिन हर इंसान वहां जाने का खर्चा नहीं वहन कर सकता है| लेकिन जो लोग भगवान् श्री बद्रीनाथ के दर्शन करना चाहते हैं उन लोगो को कंही जाने कि जरुरत नहीं है क्योकि श्री भगवान् बद्रीनाथ का बहुत पुराना मन्दिर ब्रिज चौरासी कोस में है |यह मन्दिर राजस्थान के भरतपुर जिले कि डीग तहशील में पड़ता है | यह एक बद्री नाम का गांव है | इस गांव में में श्री बद्रीनाथ का बहुत पुराना मन्दिर है |
यहाँ आपको श्री बद्रीनारयण के दर्शन हो जायेंगे | यंहा ऐसी मान्यता है कि श्री भगवान् कृष्ण द्वापर युग में यहाँ आये थे और भगवान् बद्रीनाथ के दर्शन किये और अपने लोगो को भी दर्शन कराये थे |यहां एक नदी भी बहती है जिसे अलखनंदा के नाम से जाना जाता है |इस नदी का जल एकदम साफ़ और शुद्ध है |
सैलानी यहाँ काफी मात्रा में रोज आते हैं और अलखनंदा में स्नान करते हैं तथा श्री
बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं और आनन्द महसूस करते हैं |सैलानी यहाँ काफी मात्रा में रोज आते हैं और अलखनंदा में स्नान करते हैं तथा श्री
सभी तीर्थों को ब्रज में बुलाया
मान्यता है कि जब यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। पर्वत पर नंदी स्वरूप में दिखने वाली विशालकाय शिला के नीचे शिव जी का छोटा सा मंदिर है। इसके अलावा बद्रीनाथ भी 84 कोस में ही विराजमान हैं। जिन्हें बूढ़े बद्री के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही अलकनंदा कुंड भी है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं।
लोक कथा
पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है।
जय श्री बद्रीविशाल की जय
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